Friday, May 20, 2011

मानो  या अब न मानो
-प्रीती भाटिया ५/१९/२०११




मानो  या अब न मानो
तुमसे प्यार किया है मैंने.
दुनिया छोड़ कर आई हूँ
सब त्याग दिया है मैंने.

ढूँढती तुम्हे हर नज़र है
सभी अपने बेगानों में.
तन्हा-तन्हा सा लगता है
बाज़ार, भीड़-दुकानों  में.
रंगरलियाँ सारी दूर हुई हैं,
तुमसे नैन मिलाने में.
मानो या अब न मानो
तुमसे प्यार किया है मैंने.


नींद आँखों से कोसों दूर..
सुख-चैन भी सारे खो गए.
तेरे नाम अब तो मेरे
दिन-रैन ही सारे हो गए.
तुझको पा कर लींन हुई मैं
प्रीत की सरगम गाने में.
मानो या अब न मानो
तुमसे प्यार किया है मैंने.

तुमसे ही हर महफ़िल सजे
तन्हाई अब तडपाती है.
इक पल को गर दूर हुए तुम
यह याद बहुत सताती है.
मन को कुछ न भाता है
इस बेदर्द ज़माने में.
मानो या अब न मानो
तुमसे प्यार किया है मैंने.

बचपन क्या था?
कौनसा याराना?
सब कुछ हुआ है
अब तो अनजाना.
रिश्ते-नाते भूल चुकी सब
तुमसे प्रीत निभाने में.
मानो या अब न मानो
तुमसे प्यार किया है मैंने.

दुनिया छोड़ कर आई हूँ
सब त्याग दिया है मैंने.
मानो या अब न मानो
तुमसे प्यार किया है मैंने.

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Monday, March 21, 2011

अधूरी सी प्यास
                                -प्रीती भाटिया, १८ मार्च, २०११


एक ही आस थी 
अधूरी सी प्यास थी.
कानों में गूंजे फिर
"माँ" की मीठी बोली.
पर... स्वप्न टूटा..
जब पलक खुली.
हे प्रभु! यह कैसी ठिटोली?


चाहा न मैंने अहित किसीका,
न कभी ही बुरा किया.
इसी लिए था विश्वास मुझे...
दोगे, जो मांगे जिया.
पर... स्वप्न टूटा..
जब पलक खुली.
हे प्रभु! यह कैसी ठिटोली?


तोडना ही था स्वप्न जो,
क्यों उसे संजोने दिया?
मुरझाना ही था फूल तो..
कलि क्यों उसे बन ने दिया?
ऐसे तो तुम निर्दयी नहीं.
प्रभु, फिर क्यों
यह परीक्षा की घडी?


एक ही आस थी 
अधूरी सी प्यास थी.
कानों में गूंजे फिर
"माँ" की मीठी बोली.
पर... स्वप्न टूटा..
जब पलक खुली.
हे प्रभु! यह कैसी ठिटोली?





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