अधूरी सी प्यास
-प्रीती भाटिया, १८ मार्च, २०११
एक ही आस थी
-प्रीती भाटिया, १८ मार्च, २०११
एक ही आस थी
अधूरी सी प्यास थी.
कानों में गूंजे फिर
"माँ" की मीठी बोली.
पर... स्वप्न टूटा..
जब पलक खुली.
हे प्रभु! यह कैसी ठिटोली?
चाहा न मैंने अहित किसीका,
न कभी ही बुरा किया.
इसी लिए था विश्वास मुझे...
दोगे, जो मांगे जिया.
तोडना ही था स्वप्न जो,
क्यों उसे संजोने दिया?
मुरझाना ही था फूल तो..
कलि क्यों उसे बन ने दिया?
ऐसे तो तुम निर्दयी नहीं.
प्रभु, फिर क्यों
यह परीक्षा की घडी?
चाहा न मैंने अहित किसीका,
न कभी ही बुरा किया.
इसी लिए था विश्वास मुझे...
दोगे, जो मांगे जिया.
पर... स्वप्न टूटा..
जब पलक खुली.
हे प्रभु! यह कैसी ठिटोली?
तोडना ही था स्वप्न जो,
क्यों उसे संजोने दिया?
मुरझाना ही था फूल तो..
कलि क्यों उसे बन ने दिया?
ऐसे तो तुम निर्दयी नहीं.
प्रभु, फिर क्यों
यह परीक्षा की घडी?
एक ही आस थी
अधूरी सी प्यास थी.
कानों में गूंजे फिर
"माँ" की मीठी बोली.
पर... स्वप्न टूटा..
जब पलक खुली.