Tuesday, March 20, 2007

आंगन की रौनक




बच्चों घर कब आओगे?

सूनी बगीया कब मेह्काओगे?

आंगन की रौनक कब लौटाओगे?

कानों में हमारे अब भी गूंजती है
वह कीलकारीयाँ तुम्हारी,

वह मीठी बातें और हंसी प्यारी.

वह तसवीरें तुम्हारी
कर जाती ताज़ा फीर यादें पुरानी.


ऐसा लगता है कल की ही बात हो,

जब तुमने अपना पहला शब्द पुकारा था,
पहली मुस्कान बिख्रांई और पहला कदम डाला था.

फीर तो जैसे तुम रुके ही नही,
बे-लगाम बस बढते चले गए.

सफ्ल्ताओं की सीढ़ी चादते चले गए.

अब यह हाल है

तुम इतने व्यस्त हो,
समय आगे दौड़ रह है

और तुम उसके पीछे भाग रहे हो.


यदी हो सके तो बस इतना कह दो,
बच्चों, घर कब आओगे?

सूनी बगीया कब मेह्काओगे?

आंगन की रौनक कब लौटाओगे?


Copyright ©2007 Preeti Bhatia

No comments: